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मुंज मंगलाष्टके

। मौंजी मंगलाष्टके ।

(१)

आधी ध्यावे पार्वती कुमाराला।

विद्या देतो जो स्मरे त्या नराला।

देवाचे जो विघ्न तो निवारी।

पाया देवो वामनो ब्रम्हचारी।।

(२)

वंदु या गणनायकास अजि,

त्या जो बुध्दिचा अधिपती।

ऐविद्या लाभ झणी जयास स्मरता,

होई असा गणपती।

येवोनी शुभ मंडपात बटुला,

देवोत शुभ आशिष।

(३)

हेची प्रार्थू पदास वंदुनी तया कुर्यात् बटो मंगलम्।।

सत्याने वदणे कधी न चुकणे, कर्तव्य सांभाळणे।

व्यायामा करणे तनु कमविणे, विद्यार्जना जोडणे।

माता-पितृपदी विनम्र असणे,आज्ञा सदा पाळणे।

सेवा भाव सदैव ध्यानि धरणे कुर्यात् बटो मंगलम्।।

गेले शैशव बाल्यकालही आता संपून गेला असे।

आता छात्र दशा सुयोग्य वय हे विद्यार्जनाचे असे।

विद्या ज्ञान मला सुखे मिळवून, व्हावे सुखे जीवनी।

बाळा आशिष हा रे तुज दिला कुर्यात् बटो मंगलम्।।

(४)

आकांक्षा मनी थोर ठेवुनि तुला, बांधोन मुंडावळी।

सौवर्णी तशी मौक्तिके चमकती,तीही पहा आणिली।

मौजीबंधन साज तो चढविला,वैशिष्ट्य हे त्यातले।

आहे ज्ञानही कष्टसाध्य म्हणूनी, हे सर्व तू घातले।।

(५)

सन्नारी नटल्या,मुली विनटल्या, होती मने मोदित।

सानापासुनी थोर आप्तजन हे झाले सुसंमीलित।

माला,मंगलतोरणे विलसती आनंद कोंदाटला।

मौजीबंधन साधण्यास बटु तो मार्गही दाटला।

(६)

बाळा शैशव संपले,तव आता विद्यार्जनाची दिशा।

आला,भाग्य तुझे समीप तुजला आदर्शही थोरसा।

गुर्वाज्ञा शिरसा धरी, तनुमनी राही सदा निर्मल।

वाढो सत्त्वगुणे,प्रफुल्ल सुमने सद्वर्तनाचेे बल।।

(७)

वत्सा,बाल्य तुझे अजुनि वदनी रेंगाळते मोहूनी।

सारी कोमलता मुळी न हलता राही तुला वेधुनी।

आहे प्राप्त सदा नरास करणे,तो आद्य विद्यार्थ की।

नाना कष्टही सोशिले गुरूघरी श्रीरामकृष्णादिकी।।

(८)

सत्याने चल धर्मही करि सदा स्वाध्याय सोडू नको।

तू मातापितरांसी वंदन करी कोणास निंदू नको।

आचार्यांस सदा नमून मिळवी विद्याही लाभप्रद।

आता तू व्रत आचरी दृढपणे कुर्यात् बटो मंगलम्।।

(९)

मातेचे घर सोडूनी गुरूकुळी आता पुढे राहणे।

विद्याभ्यास करी यथार्थ जगती सामर्थ्य संपादणे।

आज्ञापालनही सुबुध्दि धरूनी सर्वंकष उन्नती।

साधावी,उपदेश हा करितसे कुर्यात् बटो मंगलम्।।

(१०)

पहा हो हा बटु शोभतो साना।

वाळेनुपुरे दिसे गोजिरवाणा।

ऐसा त्याते क्रीडविती कुमारी।

पाया देवो वामनो ब्रम्हचारी।।

अनुपम्य बटो सुवदन साजे।

नानापरी बहुवाद्ये वाजे।

ऐसा त्याते क्रीडविती कुमारी।

पाया देवो वामनो ब्रम्हचारी।।

(११)

नानापरी मिळाली कुमरे बाळा।

नाना छंदे क्रीडती खेळाखेळां।

ऐसा त्याते क्रीडविती कुमारी।

पाया देवो वामनो ब्रम्हचारी।।

(१२)

माघापासुनी पांच बरवे ती शुक्लपक्षी तिथी।

द्वितीय पंचमी षष्ठिका दशमी हे एकादशी द्वादशी।

ऐसा मास तिथी मिळूनी बटुशी।

कुर्यात् बटो मंगलम्।।

(१३)

रात्री ते प्रहराहुनि अधिक जी ऐसी तृतीया बरी।

षष्ठी यामदिनाहुनी जरी तरी रात्री शुभा ते करी।

तैशी द्वादशी अर्धरात्र उपरी वेष्टोनि राहे स्वरी।

ऐशा तिथी त्या प्रदोष चुकल्या कुर्यात् बटो मंगलम्

स्वर्ऋक्षश्वां सुसौम्या श्रुतिपतिरपि चेत्केंद्रे कोणे।

स्थितः स्युः।

वर्णिवेदा यवत्ता पशुपति मृह धनवादः मन्दः।

अन्त्ये शिव कुर्यात् बटो मंगलम्।।

(१४)

श्रीमत्तातपदारविंद विपुले ध्यानस्तवारोधरा।

सक्तः स्वादत्त पुण्डरीकवरदो राजाधिराजोहरः।

या श्रीश्चंदजन चर्चितोभुतमुखो भीमातटे राधिके।

गोपीनंदन वंदिता दशशिरो कुर्यात् बटो मंगलम् ।।

(१५)

तदेव लग्नं सुदिनं तदेव।

ताराबलं चंद्रबलं तदेव।

विद्याबलं दैवबलं तदेव।

लक्ष्मीपते तेंऽघ्रियुंगं स्मरामि।।

munj managal ashtak managalasthak