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श्री रक्षाबंधन कहाणी

राजा इंद्र को रक्षा सूत्र से मिला विजय का वरदान इस कथा को युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा था इस पर भगवान श्रीकृष्ण ने कहा-हे पाण्ड पुत्र इस शुभ समय का महत्व मैं तुम्हे बताता हूं. एक बार दैत्यों और सुरों के बीच युद्ध छिड़ गया और यह युद्ध लगातार बारह वर्षों तक चलता रहा. देवताओं को परास्त करने के बाद असुरों ने उनके प्रतिनिधि इन्द्र को भी परास्त कर दिया. स्थिति में इन्द्र देवताओं सहित अमरावती चले गये. दूसरी ओर, दैत्यराज ने तीनों लोकों को अपने अधीन कर लिया और इंद्र को पद से हटा दिया और देवता एवं मनुष्य यज्ञ-कर्म न करने को कहा और अपनी पूजा का निर्देश सभी को दिया.

राक्षस के इस आदेश से यज्ञ-वेद, पाठ और उत्सव आदि समाप्त हो गये. धर्म के नाश से देवताओं की शक्ति क्षीण होने लगी. यह देखकर इन्द्र अपने गुरु बृहस्पति के पास गये और उनसे कहा कि मुझे विजया का कोई सूत्र बताएं. मैं युद्धभूमि में न तो भाग सकता हूं और न ही ठहर सकता हूं. कोई उपाय बताओ. इंद्र की पीड़ा सुनकर बृहस्पति ने उनसे रक्षा विधान बनाने को कहा. श्रावण पूर्णिमा की सुबह निम्न मंत्र से रक्षा अनुष्ठान किया गया. श्रावणी पूर्णिमा के शुभ अवसर पर इंद्राणी ने द्विजों से स्वस्तिवाचन कर रक्षा सूत्र लिया और उसे इंद्र की दाहिनी कलाई पर बांधकर युद्ध के मैदान में लड़ने के लिए भेज दिया. रक्षाबन्धन के प्रभाव से राक्षस भाग गये और इन्द्र की विजय हुई. राखी बांधने की परंपरा यहीं से शुरू हुई.

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कृष्ण-द्रौपदी कथा एक बार भगवान कृष्ण के हाथ में चोट लग गई और खून निकल आया. द्रौपदी से यह सब देखा नहीं गया और उन्होंने तुरंत अपनी साड़ी का पल्लू फाड़कर श्रीकृष्ण के हाथ में बांध दिया, परिणामस्वरूप खून बहना बंद हो गया. तब श्री कृष्ण ने दौपदी के इस सहयोग हेतु सदैव उसकी रक्षा करने का वचन दिया. कुछ समय बाद जब दुःशासन ने द्रौपदी का चीरहरण किया तो श्रीकृष्ण ने इस बंधन का चीरहरण कर उसका उपकार चुकाया. यह प्रसंग भी रक्षाबंधन के महत्व को प्रतिपादित करता है.

rakhi pournima kahani katha