श्री स्वामी समर्थ महाराज आरती
swami samarth maharaj aaratiकाकड आरती
ओवाळीतो काकड आरती स्वामी समर्थ तुजप्रती। स्वामी समर्थ तुजप्रती।
चरण दावी जगत्पते। स्मरतो तुझी अभिमूर्ती॥धृ॥
भक्तजन येऊनिया दारी उभे स्वामीराया। दारी उभे स्वामीराया।
चरण तुझे पहावया। तिष्ठती अती प्रीती॥१॥
भक्तांच्या कैवारी समर्था समर्थ तु निरधारी। समर्था समर्थ तु निरधारी।
भेट घेऊन चरणावरी। गातो आम्ही तुझी स्तुती॥२॥
पूर्णब्रम्ह देवाधिदेवा निरंजनी तुझा ठावा। निरंजनी तुझा ठावा।
भक्तासाठी देहभाव। तारिसी तु विश्वपती॥३॥
स्वामी तुची कृपाघन ऊठुन देई दर्शन। ऊठुन देई दर्शन।
स्वामीदास चरण वंदी। मागतसे भावभक्ती॥४॥
जय जय अवधूता, हो स्वामी अवधूता
जय देव जय देव, जय जय अवधूता, हो स्वामी अवधूता।
अगम्य लीला स्वामी, त्रिभुवनी तुझी सत्ता।। जय देव जय देव॥धृ॥
तुमचे दर्शन होता जाती ही पापे।
स्पर्शनमात्रे विलया जाती भवदुरिते।
चरणी मस्तक ठेवूनि मनि समजा पुरते।
वैकुंठीचे सुख नाही या परते।।
जय देव जय देव॥१॥
सुगंध केशर भाळी वर टोपी टिळा।
कर्णी कुंडल शोभति वक्षस्थळी माळा।
शरणागत तुज होतां भय पडले काळा।
तुमचे दास करिती सेवा सोहळा।। जय देव जय देव॥२॥
मानवरुपी काया दिससी आम्हांस।
अक्कलकोटी केले यतिवेषे वास।
पूर्णब्रम्ह तूची अवतरलासी खास।
अज्ञानी जीवास विपरीत भास।। जय देव जय देव॥३॥
र्निगुण र्निविकार विश्वव्यापक।
स्थिरचर व्यापून अवघा उरलासी एक।
अनंत रुपे धरसी करणे नाएक।
तुझे गुण वर्णिता थकले विधीलेख।।
जय देव जय देव॥४॥
घडता अनंत जन्मे सुकृत हे गाठी।
त्याची ही फलप्राप्ती सद्-गुरुची भेटी।
सुवर्ण ताटी भरली अमृत रस वाटी।
शरणागत दासावर करी कृपा दृष्टी।।
जय देव जय देव॥५॥
जय जय सद्-गुरु स्वामी समर्था
जय जय सद्-गुरु स्वामी समर्था,
आरती करु गुरुवर्या रे।
अगाध महिमा तव चरणांचा,
वर्णाया मति दे यारे॥धृ॥
अक्कलकोटी वास करुनिया,
दाविली अघटित चर्या रे।
लीलापाशे बध्द करुनिया,
तोडिले भवभया रे॥१॥
यवन पूछिले स्वामी कहाॅ है,
अक्कलकोटी पहा रे।
समाधी सुख ते भोगुन बोले,
धन्य स्वामीवर्या रे॥२॥
जाणिसे मनीचे सर्व समर्था,
विनवू किती भव हरा रे।
इतुके देई दीनदयाळा,
नच तव पद अंतरा रे॥३॥
जय देव, जय श्री स्वामी समर्था,
जय देव, जय देव, जय श्री स्वामी समर्था, जय श्री स्वामी समर्था।
आरती ओवाळू चरणी ठेउनिया माथा।।धृ।।
छेलि खेडे ग्रामी तु अवतरलासी, राया अवतरलासी।
जग्दउध्दारासाठी राया तु फिरसी।
भक्तवत्सल खरा तु एक होसी,
राया एक होसी।
म्हणुनी शरण आलो तव चरणासी।
जय देव, जय देव०॥१॥
त्रैगुण-परब्रम्ह तुझा अवतार,
तुझा अवतार।
त्याची काय वर्णु लिला पामर।
शेशादिक क्षीणले नलगे त्या पार,
नलगे त्या पार।
तेथे जडमुढ कैसा करु मी विस्तार।
जय देव, जय देव०॥२॥
देवाधिदेवा तु स्वामी राया,
तु स्वामी राया।
निरजर मुनीजन ध्याती भावे तव पाया।
तुझसी अर्पण केली आपुली ही काया,
आपुली ही काया।
शरणागता तारी तु स्वामी राया।
जय देव, जय देव०॥३॥
अघटीत लिला करुनी जडमुढ उध्दारिले,
जडमुढ उध्दारिले।
किर्ती एकूनी कानी चरणी मी लोळे।
चरण प्रसाद मोठा मज हे अनुभवले,
मज हे अनुभवले।
तुझ्या सुता नलगे चरणा वेगळे।
जय देव, जय देव०॥४॥
आरती स्वामी राजा
आरती स्वामी राजा।(२)
कोटी आदित्यतेजा। तु गुरु मायबाप।
प्रभू अजानुभुजा। आरती स्वामी राजा॥धृ॥
पुर्ण ब्रम्ह नारायण।(२)
देव स्वामी समर्थ। कलीयुगी अक्कलकोटी।
आले वैकुंठ नायक। आरती स्वामी राजा॥१॥
लीलया उध्दरिले।(२)
भोळे भाबडे जन। बहुतीव्र साधकासी।
केले आपुल्या समान। आरती स्वामी राजा॥२॥
अखंड प्रेम राहो।(२)
नामी ध्यानी दयाळा। सत्यदेव सरस्वती। म्हणे आम्हा सांभाळा। आरती स्वामी राजा॥३॥